काैन काैन से नियम पालन करने से सफल हाेते है तंत्र साधना ?


 ◆साधना के नियम◆


नवरात्रि में जो भी साधना करते हैं उसका 100 गुना अधिक फल मिलता है

साधना शुरू करने से पूर्व नियम :

१) सर्वप्रथम कौनसी साधना करनी है उसका चुनाव कर लें और फिर अन्य साधनाओं के बारे में न सोचें।

२) कोई भी साधना शुरू करने से कम से कम २ हफ्ते पहले से ही ध्यान का अभ्यास शुरू कर दे।

३) साधना शुरू करने से पूर्व जो भी प्रश्न पूछने हैं पूछ लीजिये साधना शुरू करने के बाद कोई प्रश्न नहीं।

४) साधना शुरू करने से पहले उसकी दीक्षा ले लीजिये।  दीक्षा लेने से सफलता मिलने की सम्भावना ज़्यादा होती है।

५) साधना शुरू करने से पूर्व सुनिश्चित कर लें की साधना और हवन (अगर है तो ) की सारी सामग्री का आप इंतेज़ाम कर चुके हैं।

६) साधना शुरू करने से कम से कम एक सप्ताह पूर्व से ब्रह्मचर्य में रहे।


साधना में नियम :

१) जिस मुहूर्त में साधना बताई हुई है उसी मुहूर्त में शुरू करें और शुरू करने से पहले अपने गुरु को जानकारी दे दें और गुरु की आज्ञा लेकर ही साधना करें तथा कोई भी साधना करने से पहले गुरुमंत्र लेकर उसकी साधना अवश्य कर ले जिससे आपकी सुरक्षा सुनिश्चित हो जाये।

२) ध्यान रखें की साधना के समय कोई आपको रोके टोके नहीं और साधना में जो भी घटीत हो जो भी अनुभव हो वह गुरु को अवश्य बताये। गुरु के अतिरिक्त किसी को नहीं।

३) साधना का कक्ष अलग ही रखें। अगर निर्जन स्थान या शमशान इत्यादि साधना स्थल बताया गया है तो अलग बात है अन्यथा अर्थ ये है की साधना घर में ही करनी है।

४) शाम ७ बजे तक भोजन कर लें।  भोजन हल्का और सहज पचने वाला हो।

५) साधना स्थल को स्वयं से साफ़ करें। अगर कोई विशेष वस्त्र बताएं हैं तो वो पहनें अन्यथा जिस रंग का आसन है उस रंग के वस्त्र धारण कर सकते हैं।

६) आसन बिछा लें।  दिशा का ध्यान रखें। आसन पे बैठ जाएं।  दीपक बताया गया है तो उसे जला लें।

७) साधना शुरू करने से पूर्व गुरु मन्त्र की 1,3,5 माला करें।

८) उसके बाद जप माला को प्रणाम करके मंत्र साधना शुरू करें।

९) माला के बीच में आँखें नहीं खोलनी हैं , एक माला पूरी होने पर जब सुमेरु से पलटना है तो उस समय आँख खोल सकते हैं और दिया आदि की निगरानी कर  सकते हैं।

१०) मन्त्र जप के समय शरीर को स्थिर रखने का प्रयास करें।

११) जप मानसिक ही करें।

१२) जब जप पूरा हो जाये तो उसके बाद आसन पर बैठकर ही कुछ समय आप ध्यान करें। और यही क्रिया आपको पूरे साधनाकाल में दोहरानी है।

साधना के बाद के नियम (अगर हवन है तो ) :

१) साधना के बाद प्रयास करें की पांच दिन के अंदर हवन संपन्न हो जाना चाहिए।

२) दशांश हवन किया जाता है अर्थात दसवे हिस्से का हवन। मान लीजिये आपने १० माला रोज़ २१ दिन तक की तो कुल मिला के आपने २१० मालाएं की। तो इसका दसवा हिस्सा अर्थात २१ माला का आप हवन करेंगे। अब इसके दसवे हिस्से का तर्पण किया जाता है अर्थात २. १ माला इसका अर्थ है की आप २ माला तो पूरी करेंगे उसके साथ काम से काम ११-१२ आहूतियां और डालिये या फिर आप ढाई माला का भी तरपान कर सकते हैं।  जितने का तर्पण हुआ है उसके दसवे हिस्से का मार्जन अर्थात 0.२१  माला अर्थात २१ आहूतियां। इसमें ज़्यादा दिमाग पे ज़ोर न डालें २-३ आहूतियां आप ज़्यादा भी डालेंगे तो समस्या नहीं है।

३) हवन जो भी सामग्री बताई गयी है उससे किया जाता है।  तर्पण और मार्जन किसी तरल पदार्थ से किया जाता है।

४) सर्वप्रथम आसान बिछा के दीपक प्रज्जवलित कर लें। लकड़ियां लगा लें हवन कुंड में। उसके बाद कम से कम तीन मिनट का ध्यान करें फिर हवन प्रारम्भ करें।

५) हवन करते समय कुशा की या फिर सोने की अंगूठी धारण करें।

६) हवन करते हुए मन्त्र के अंत में स्वाहा लगा के आहुति डालें अगर पहले से मन्त्र में स्वाहा लगा है तो खुद से लगाने की ज़रूरत नहीं है। तर्पण के समय अंत में तर्पयामि और मार्जन के समय मार्यामी जोड़ें।

७) हवन पूर्ण होने के बाद पुनः ध्यान करें।

८) दूसरे दिन हवन सामग्री का विसर्जन करें और विसर्जन तक ब्रह्मचर्य में रहे।


विशेष ध्यान देने योग्य बातें :

१) साधना के समय नारी के प्रति हमेशा आदर भाव रखें।

२) अपनी साधना के बारे में किसी को न बताएं।

३) जप करते समय माला और आपके शरीर का कोई भी अंग ज़मीन को नहीं छूना चाहिए।

४) तामसिक साधनाओं में धार्मिक स्थान , वस्तु , प्रशाद इत्यादि सबका परहेज करें।

५) अपने आराध्य के प्रति पूर्ण विश्वास और आदर प्रेम रखें।

६) सभी नियम का अच्छे से पालन करें।